ये राह-ए-ज़िंदगी इतनी उलझी सी क्यों है , मैं हर बार शूरू करता हूँ चलना और हर बार खो जाता हूँ ।
क्या पूँछू मैं ज़िन्दगी पता तेरा, ना जाने क्यों मैं पा कर भी तुमको, खोजने हर बार निकल जाता हूँ ।
ऐ ज़िन्दगी कभी पाया था मैंने भी खुदा को तेरी राहों में, मगर संभाल लेता मैं अपने खुदा को ,इतना हुनर कहाँ जानता हूँ।
क्या विडंबना है ऐ मेरी किस्मत ,थी उम्मीद जिनसे वफ़ा की ,बेवफ़ाई वो और वफ़ा करना सिर्फ मैं जानता हूँ।
कभी ज़िन्दगी के लिये मैं पूरे जहान से लड़ गया था ,
आज हर बार दुआ में ,लिए हाथ मे कफन , मौत मैं माँगता हूँ ।
Bahut sahi
ReplyDeleteThank u very much ....
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