आज ,हर किसी से दिल मे इतनी नाराजगी सी क्यों है।
ऐ जिंदगी तुझे मुझसे ही दुश्मनी सी क्यों है ।
कभी नजरें नही हटती थी उनकी ,मुझ पर आ जाने के बाद, आज बड़ी मुश्किल से उन नजरो को खुद पर उठते देखा है।
जो कसम खाते थे ,मर जाने की मोहब्बत मे साथ मेरे,
आज उनको लहु के एक बूंद पर बिलखते देखा है।
आज ,हर किसी से दिल मे इतनी नाराजगी सी क्यों है।
ऐ जिंदगी तुझे मुझसे ही दुश्मनी सी क्यों है।
यु तो बहुत कम थे काफिले मे मेरे अपने ,जिन पर खुद से ज्यादा यकीन था ,
मैं तड़पता रहा एक मुस्कान की खातिर और उनको खिल खिलाकर हँसते देखा है ।
लड़ता रहा हर किसी से जहान मे जिसके वास्ते ,
और बना के खुदा उसको दिल मे मंदिर बना दी थी ,
आज उसी मंदिर से अपने खुदा को निलते देखा है ।
आज, हर किसी से दिल मे इतनी नाराजगी सी क्यों है।
ऐ जिंदगी तुझे मुझसे ही दुश्मनी सी क्यों है।
जिनके होने से खुशियों का सागर पास था ,
जिनके होने से जिंदा होने का एहसास था ,
कितना अजीब है ये वक़्त का खेल भी ,
आज उसी से मैं ,खुद को डरते देखा है ।
जो बनाया था महल कभी दिल मे ,
जिसमे हर यादों को संजोये रखा था ,
अपने महल को आज रेत की तरह ,
उन्हीं की आँधियों से बिखरते देखा है।
आज,हर किसी से दिल मे इतनी नाराजगी सी क्यों है।
ऐ जिंदगी तुझे मुझसे ही दुश्मनी सी क्यों है।
खुद अंधेरे मे भटकता रहा जिंदगी भर ,
खुद बन कर दिया जिसके लिए जलता रहा जिंदगी भर ,
आज मेरी लौ को उसी से लड़ते देखा है ।
अब उमीदों की डोर जुड़ती नही किसी से,
फिर से किसी को अपना बनाने की चाहत भी ना रही ,
पाकर जिंदगी के इस मोड़ पर मुझको ,
हर बार आज खुशि को मुझ पर हँसते देखा है ।
आज,हर किसी से दिल मे इतनी नाराजगी सी क्यों है।
ऐ जिंदगी तुझे मुझसे ही दुश्मनी सी क्यों है।