Wednesday 27 July 2016

हर दर पर सर झुकाया.....

हर दर पर सर मैने झुकाया ,
फिर बाद इतनी मोहब्बत के भी,
तुम्हें पा क्यों नहीं पाता।

तेरी यादों से लिपटे ख़त है मेरे पास ,
बेबस मैं भी कितना ,
उन्हें अब पढ़ नहीं पाता।

गुजर जाती है राते मेरी ,
हर रोज़ इसी कश्मकश में ,
और सपनों में भी क्यों तुमको झुठला नहीं पाता।

हर बार तेरे नाम लिखता,
फिर यूँ लिखकर मिटा देता हूँ,
फिर क्यों खुद से तुम्हें मैं मिटा नहीं पाता।

क्या रह गया जिससे हो कर न गुजरा हूँ मैं,
इतनी कोशिशो के  बाद भी ,
तुम्हें भुला क्यों नहीं पाता ।

हर वो  पल याद है आज भी ,
अपनी खुशियों का मुझको ,
ना जाने क्यों धागों में बस पिरो मैं नहीं पाता ।

Sunday 17 July 2016

एक नजर पर मेरा बिखर जाना ...

वो माफ़ ना कर सके मुझे,जो मैंने मुड़ कर एक बार नहीं देखा ,
बस कुछ इस तरह मैंने  ,अपने हजारों अश्क़ो को उनसे  छुपा लिया ।
रोक नहीं पाया बिखरने से खुद को ,जब भी एक नजर उनको देखा ,
बस ना देख कर उनको  ,खुद को आज तक बिखरने से बचा लिया ।

Saturday 16 July 2016

तेरी समझ...

मेरे दिल की दीवार पर ,
जो पढ़ तुम नहीं पायी ,
वो मैं अब ज़ुबानी क्या बयां करूँ।

मेरे दिल की हालात  ,
तुमसे छुपा कब रहा ,
उसे अब एक कहानी से क्या बयां करूँ।

वक़्त का खेल

तुम बिछड़ जाओगे मिलकर,  इस बात में कोई शक़ ना  था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना  था !!