Friday 30 December 2016

अनकहा

खुद अश्को के सागर में बह न जाऊं कहीं , आज मैं भी रो लेता हूँ ।
जो कभी जुबान से मैं ना कह पाया,वो आशुओं से कह देता हूँ ।

Sunday 11 December 2016

वक़्त

मैं सागर हूँ  ऐसे मोहब्बत  का मेरे हमसफ़र , जिसका कोई किनारा ना  होगा।
हर कस्ती की एक उम्र होती है ,डूब जाना मेरे लिए  मुझे जरा भी गवारा  ना होगा ।

Wednesday 7 December 2016

नासमझ

जिनको हक़ है मेरे जान पर,यु ही दुआ  में नासमझ वो,  सिर्फ मेरी एक  नजर  मांग लेत हैं ।
उनको तो  खुदा मान  बैठा हूँ कब से, नहीं सोचता एक पल भी ,अगर वो कभी मुझसे जिगर मांग लेते हैं।

वक़्त का खेल

तुम बिछड़ जाओगे मिलकर,  इस बात में कोई शक़ ना  था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना  था !!