Thursday 13 April 2017

कैसे बोल दूँ...

जुबान से वो बोल दूँ ,
जो सिर्फ महसूस ही हुआ ,
जिसे अल्फ़ाज़ की जरूरत ही नहीं ,
यु तो आसान नहीं होता ।
दिल और जहाँ के बीच ,
घूँघट किये हुए दुल्हन सी ,
पलको में छुपे  आंशुओं को ,
काश तुमने सिर्फ देखा होता ।

Thursday 6 April 2017

जिंदगी और ख्वाइश

जिंदगी गुजर गयी ख्वाइशों को  मारते मारते ,
और यु ही मैं आखिरी मंजिल से,
जब  कुछ कदम दूर जब रहा गया ,
मौत ने भी पूछ ही लिया  ,
बता तेरी आखिरी रजा क्या है ।
एक तरंग  सी दौड़ी और आँखे नम हो गयी मेरी ,
छुपा कर आँसुओ को पलकों में मैंने
धीरे से उसके पास जाकर बोला
फिर से ना जिंदगी  मिले
बस इतना बता उसकी सजा क्या है ।

वक़्त का खेल

तुम बिछड़ जाओगे मिलकर,  इस बात में कोई शक़ ना  था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना  था !!