Saturday 10 June 2017

आकर तेरे शहर में...

आकर तेरे शहर में ,
मैं हर किसी से तेरा पता पूछता हूँ।
हवाओं ने छू कर बोला,
तुम आँखे बंद कर लो,
और चलो मेरे साथ ,
मैं  तुमको पहुँचा उनकी गली में देता हूँ ।
बाद सदियों के ,
मैं उनके शहर आया हूँ ,
इस हाल में वो क्या पहचान मुझे लेंगे ,
ऐ हवा मैं बस यही सोचता हूँ।
उन्होंने बादलों पर लिखा था ,
तुम्हारे आने की खबर को ,
हो ना यकीन मुझ पर अगर,
चलो मैं तुम्हें मिला बादलों से देता हूं ।
मैं आज भी जिंदा हूँ ,
उनके दिल के कोने में कही ,
कौन कहता है की दूरियाँ ,
मोहब्बत को दफना देती हैं ,
मिला दो उनसे मुझे ,
मैं उनको अपनी दास्तां ए मोहब्बत सुना देता हूँ।
ऐ  हवा कुछ तो बताओ मुझे उनके बारे में ,
क्या आज भी वो तन्हा ,
उन्ही सीढ़ियों पर बैठते हैं ,
दूर ना जाने क्या बहुत देर तक देखते हैं,
बैठा ले मुझको पंखों पर ,
अब मैं  खुद ही सबकुछ देख लेता हूँ  ।
पता है हवा तुमको ,
पहले मैं ऐसा ना था ,
अब ना जाने क्या बन गया। हूँ ,
खुद से नफरत होती है मुझे ,
आज बता कर सब कुछ अपने खुदा से ,
मैं खुद को आज बदल देता हूँ ।
जो किसी से नही बताया मैन ,
जो मिल कर उनसे बयां मुझे करना है ,
ना जाने कितने दाग है मेरे व्यतित्व पर,
जो उनके ना होने से मुझ पर लगा है ,
आज अपने अंशुओ से मैं धूल देता हूँ।

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