ग़म की राहों पर अज़नबी सा चलकर ,
खुशियों की तलाश करता रहा हूँ मैं |
खोया था जिनको पहले कभी ,
कभी उनको तो कभी ख़ुद को तलाश करता हूँ मैं |
कुछ भी तो ना रहा ,
जो बच गया हो मुझसे ,
और तुझे भुलाने के लिये जिससे होकर ना गुजरा हो ,
अब तो बस ,
आखिरी साँस टूटने की आस बाकी है ।
पूछुंगा मैं,
अगर वो मिल जाये,
क्या कोई दर्द और भी रह गया ,
मैंने जिसे जिया ही नहीं ,
और जिसका एहसाह बाकी है।
तुम बिछड़ जाओगे मिलकर, इस बात में कोई शक़ ना था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना था !!