Sunday 9 July 2017

ख़ुद खोजता मुसाफ़िर हूँ ..


ग़म की राहों  पर अज़नबी सा चलकर ,
खुशियों की तलाश करता रहा हूँ  मैं | 
खोया था जिनको पहले  कभी ,
कभी उनको तो कभी  ख़ुद को तलाश करता हूँ मैं | 


Friday 7 July 2017

कुछ और बाकी है ?


कुछ भी तो ना रहा ,
जो बच गया हो मुझसे ,
और तुझे भुलाने के लिये जिससे होकर ना गुजरा हो  ,
अब तो बस ,
आखिरी साँस टूटने की आस बाकी है ।
पूछुंगा मैं,
अगर वो मिल जाये,
क्या कोई दर्द और भी रह गया ,
मैंने जिसे जिया ही नहीं ,
और जिसका एहसाह बाकी है।

वक़्त का खेल

तुम बिछड़ जाओगे मिलकर,  इस बात में कोई शक़ ना  था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना  था !!