ये जहां भी एक खुदा को नही मानता , तुम तो सिर्फ उसे ही अपना खुदा मान बैठे हो ।
मुसाफ़िर तुम कितने नादान हो , तुम जो उड़ते बादलों को आसमान मान बैठे हो ।
Monday 7 August 2017
मुसाफ़िर
Friday 4 August 2017
वक्त और तूफ़ान
ये जो छायी अजीब सी शांति है,
इतना शोर क्यों मचा रही है ।
कोई पूछे ख़ुदा से की ,
क्या कोई जिंदगी में तूफ़ान आने वाला है ?
सफ़र में हर मुसाफ़िर सहमा सहमा सा है ,
वो भी रो रो कर कुछ कह रही है ,
कैसे संभालू अब मैं तुमको वक्त का मकान आने वाला है ।
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