Friday 21 October 2016

माँ

तेरे चरणों को छूकर ,
यूँ तुझसे लिपट कर ,
इतने वर्षों के बाद भी मैं, फिर से बच्चा बन जाता हूँ माँ।

तेरे आँचल की छाया पा कर ,
तेरे गोद की माया पा कर ,
छोड़ छाड़ कर सबकुछ मैं, फिर से अच्छा बन जाता हूँ  माँ।

गुज़र कर सारी ऊपर नीचे की बस्ती से भी ,
काले सागर मे अपनी ही टूटी कश्ती से भी ,
तेरे लिए दुनिया में हर बार मैं, सबसे सच्चा बन जाता हूँ माँ ।

हर किसी की नफरत के बाद भी ,
खुद मेरी कुछ काली हसरत के बाद भी ,
पाकर तेरी ममता की छाया मैं, फिर से अच्छा बन जाता हूँ माँ।

कैसे देखूँ तेरे आँशु जो मेरे मोती हैं ,
मेरी  लिये जो तू रात भर नहीं सोती है ,
लहू की एक बूद पर ही मैं, दुआओं से लिपटा  गुच्छा बन जाता हूँ माँ ।

मैं रोता हूँ तो तुम तो  भी रोती है,
मेरे आशुओं से अपना पल्लु भिगोती है ,
मत हो परेशान तू, तेरे लिए फिर से मैं अच्छा बन जाता हूँ माँ।

                                              

वक़्त का खेल

तुम बिछड़ जाओगे मिलकर,  इस बात में कोई शक़ ना  था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना  था !!