Wednesday 29 June 2016

जिंदगी के एक मोड़ पर ...

भूल कैसे जाऊँ जिसे दिल में सींचा था ,
जो आँखो से होकर अश्क़ो में बह गया,
किसी मोड़ पर जिंदगी के ।

कुछ यूँ उलक्षा मै वक़्त के भँवर में ,
चाहकर भी रुक नहीं पाया तेरे साथ,
उस मोड़ पर जिंदगी के।

तेरी आँखों से सिर्फ अश्क़ नहीं  ,
मोहब्बत का पूरा कारवां बहा था ,
उस मोड़ पर जिंदगी के ।

अगर एहसास था मेरे दर्द का तुझको ,
फिर गले क्यों नहीं लगा लिया आकर  ?
खड़ी रही मैं आज तक उस मोड़ पर जिंदगी के ।

होकर अलग तुमसे मैं इंसान कहाँ रहा ?
ज़िंदा रहकर मैं फिर ज़िंदा कहाँ रहा ?
आकर इस मोड़ पर  जिंदगी के ।

कह तो दिया होता इंतजार ना करना ,
मै जिन्दा ना रहती साँसों के रहमो करम पर  ,
आकर इस मोड़ पर जिंदगी के।

तुम्हें पाने की आस मै कैसे छोर देता ,
लड़ता रहा मै हथेली की लकीरों से ,
आज तक उस मोड़ से जिंदिगी के ।

मोहब्बत करना मेरा गुनाह हो गया था,
जो आज तक चलती रही तन्हा ही काटों पर,
बाद उस मोड़ से जिंदगी के ।

काश ना हारा होता हालातों से मै,
सिर्फ देखता रह गया तुम्हें तड़पते हुए ,
आकर इस मोड़ पर जिंदगी के ।

बेरंग मेरे जिंदगी हो गयी हार कर तुम्हें हालातों से ,
सोचता हूँ आज फिर चल दूँ ,
उसी मोड़ पर जिंदगी के ।

ना कब्र बंधन होगा ना आसमान बंधन होगा ,
तुम आवाज तो एक बार देना ,
आकर फिर से उसी मोड़ पर जिंदगी के ।

Friday 24 June 2016

मेरे हालात और मेरे अनसुने अल्फ़ाज...

क्यों नही तुमने मेरे हालात समझे  ।
जो कह नही सका मै ,वो अल्फ़ाज समझे ।

तुम्हें अपना समझना मेरा,
गुनाह कब से हो गया था।
जो दिल मे आये वो कह जाना मेरा,
नागवार कब से हो गया था  ।

रह नही सकता तुम बिन ,
इसारों मे कह तो दिया था ।
तन्हा चल नही सकता अब राहों में,
बातों बातों मे कह तो दिया था ।

फिर क्यों नही तुमने मेरे हालात समझे ।
जो कह नही सका मै वो अल्फ़ाज समझे ।

रह सकती है मुझ बिन ,
आज दिल को यह समझा लेना आसान होगा ।
गैरों की महफ़िल मे ,
पलको मे छुपे आँशुओं को छुपा लेना आसान होगा ।
जब भी  डूबेगी मेरी कश्ती तेरे दिल में ,
हर किसी ये दर्द छुपा लेना आसान होगा ।

मगर खुद से पूछना ,
क्या जो हर किसी से छुपा लिया है तुमने ,
वो खुद दिल से भी छुपा लेना आसान होगा ?

तब दिल के हर कोने से ये आवाज आएगी ,

संग मेरे ,
सदियोँ का सफ़र भी कुछ पलों में गुजर जायेगा ,
मगर मुझ बिन ,
एक पल का गुजरना अब आसान ना होगा ।

फिर क्यों नही तुमने मेरे हालात समझे ।
जो कह नही सका मै वो अल्फ़ाज समझे ।

कभी बंद आँखों से एक बार याद करना मुझे ,
छा जाऊंगा मैं बादल बनकर तेरे ऊपर ,
तेरा यु धूप से तन्हा ही बच जाना आसान ना होगा ।
क्षाया बन कर घेर लूँगा  हर बार तुमको ,
बारिश की बूंदों से बार बार बच जाना आसान ना होगा।
लिपट जाऊंगा मै तेरे पैरो से कुछ इस तरह ,
सफर मे काटों से होकर ,तेरा यूँ ही  निकल जाना आसान ना होगा ।

फिर क्यों नही तुमने मेरे हालात समझें  ।
जो कह नही सका मैं ,वो अल्फ़ाज समझे ।

Wednesday 22 June 2016

काश ऐसा न होता ...

होती अगर तन की कीमत इस  संसार में ,
तो लाशो का यूँ ही बाजार लगा करता ।

काश ना हारा होता ,
मैं खुद को अपनों के ही बाजार में,
तो  आज तेरे नाम के साथ मेरा नाम जुड़ा करता ।

किसको ठहराता गलत और किसको सही कहता मैं ,
किससे करता प्यार  और किससे नफरतम करता मैं,

होती अगर ताकत ,
हालात को बस में करने की  मुझमें ,
तो आज खुद से नफरत नहीं ,मैं भी प्यार करता ।

होती अगर तन की कीमत  इस संसार में ,
तो लाशो का यूँ ही बाजार लगा करता ।

किससे हारता  और किससे जीत जाता मैं,
किसको अपनाता और किसको ठुकरता मैं,

काश मैं जान पाता अपनों मे अपनों को  ,
तो आज मैं तुमको छोड़ सबका त्रिस्कार करता ।

काश ना हारा होता,
मैं खुद को यूँ ही अपनों के बाजार में,
तो आज तेरे नाम के साथ मेरा नाम जुड़ा करता।

क्या पाया मैंने और क्या रह गया पाना बाक़ी,
क्या खोया मैंने और क्या रह गया खोना बाक़ी,

काश ना पड़ा होता इस खोने पाने में ,
तो दुनिया मे हर कोई आज मेरा जय जय कार करता ।

होती अगर तन की कीमत इस  संसार में ,
तो लाशो का यूँ ही बाजार लगा करता ।

Tuesday 14 June 2016

ऐसे जहान चले...

हाथों मे तेरा हाथ लेकर , चल चले ऐसे जहान चले ।
जहाँ तैरता मैं बादल सा मोहब्बत के आसमानों में और बारिश की बूंदो में तुम हो ,
जब भी थक जाऊँ मैं किसी मोड़ पर आकर ,वहीं वृक्ष की क्षायों में तुम हो ।
जहाँ अंधरे रास्ते पर जब कभी चाँदनी हो तो ,  काश उस चन्दा में तुम हो ,
जिंदगी के आखिर पल में जो मांगू मैं खुदा से ,काश उस दुआ में  तुम हो ।
दो जिस्म एक जान लेकर ,चल चले ऐसे जहान चले।
जहाँ जब कभी मैं तन्हा रहू आसमान के तले, बस चमकते तारों मे तुम हो ,
सागर पर चलती लहरें, जो उठे  चाँद की ओर ,उन मचलती  लहरों मे तुम हो ।
जहाँ रात के सन्नाटे मे जो कभी माँ ने  गुनगुनाये मेरे   लिए , काश उस लोरीे  सी तुम हो ,
बचपन मे सुनी जो कहानियों मैंने ,जो आज भी दिल में जिन्दा कहीं है ,काश उन कहानी की परि सी  तुम हो ।
खुशियों का एक आसमान लेकर ,चल चले ऐसे जहान चले ।
जहाँ मंदिर मे जो पढ़ू मैं ,उस पूजा मे तुम हो,
मस्जिद मे मांगी मेरी , हर दुआ  मे  तुम हो।
जहाँ चेहरा कोई भी हो ,हर चेहरे में तुम हो ,
मेरी लिए दिन में सूरज और रात में चाँद तुम हो ।
मोहब्बत   का  एक कारवां लेकर ,चल चले ऐसे जहान चले ।
जहां हर धङकन मे बस इश्क़  और जहां नफरत का कोई निशान ना हो ,
जहाँ सब कुछ तुम बिन कम सा लगे और पाकर तुमको और कोई अरमान ना हो ,
जहाँ तेरे होने से सिर्फ मेरा होना और बिन तेरे मुक्षमे कोई  जान  ना हो ।
सोचता हूँ कुछ ऐसा कर जाऊँ  ,बाद उसके  बिन तेरे मेरा कभी नाम ना हो ।
हाथों मे तेरा हाथ लेकर , चल चले ऐसे जहान चले ।

वक़्त का खेल

तुम बिछड़ जाओगे मिलकर,  इस बात में कोई शक़ ना  था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना  था !!