Friday 24 June 2016

मेरे हालात और मेरे अनसुने अल्फ़ाज...

क्यों नही तुमने मेरे हालात समझे  ।
जो कह नही सका मै ,वो अल्फ़ाज समझे ।

तुम्हें अपना समझना मेरा,
गुनाह कब से हो गया था।
जो दिल मे आये वो कह जाना मेरा,
नागवार कब से हो गया था  ।

रह नही सकता तुम बिन ,
इसारों मे कह तो दिया था ।
तन्हा चल नही सकता अब राहों में,
बातों बातों मे कह तो दिया था ।

फिर क्यों नही तुमने मेरे हालात समझे ।
जो कह नही सका मै वो अल्फ़ाज समझे ।

रह सकती है मुझ बिन ,
आज दिल को यह समझा लेना आसान होगा ।
गैरों की महफ़िल मे ,
पलको मे छुपे आँशुओं को छुपा लेना आसान होगा ।
जब भी  डूबेगी मेरी कश्ती तेरे दिल में ,
हर किसी ये दर्द छुपा लेना आसान होगा ।

मगर खुद से पूछना ,
क्या जो हर किसी से छुपा लिया है तुमने ,
वो खुद दिल से भी छुपा लेना आसान होगा ?

तब दिल के हर कोने से ये आवाज आएगी ,

संग मेरे ,
सदियोँ का सफ़र भी कुछ पलों में गुजर जायेगा ,
मगर मुझ बिन ,
एक पल का गुजरना अब आसान ना होगा ।

फिर क्यों नही तुमने मेरे हालात समझे ।
जो कह नही सका मै वो अल्फ़ाज समझे ।

कभी बंद आँखों से एक बार याद करना मुझे ,
छा जाऊंगा मैं बादल बनकर तेरे ऊपर ,
तेरा यु धूप से तन्हा ही बच जाना आसान ना होगा ।
क्षाया बन कर घेर लूँगा  हर बार तुमको ,
बारिश की बूंदों से बार बार बच जाना आसान ना होगा।
लिपट जाऊंगा मै तेरे पैरो से कुछ इस तरह ,
सफर मे काटों से होकर ,तेरा यूँ ही  निकल जाना आसान ना होगा ।

फिर क्यों नही तुमने मेरे हालात समझें  ।
जो कह नही सका मैं ,वो अल्फ़ाज समझे ।

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