Tuesday 14 June 2016

ऐसे जहान चले...

हाथों मे तेरा हाथ लेकर , चल चले ऐसे जहान चले ।
जहाँ तैरता मैं बादल सा मोहब्बत के आसमानों में और बारिश की बूंदो में तुम हो ,
जब भी थक जाऊँ मैं किसी मोड़ पर आकर ,वहीं वृक्ष की क्षायों में तुम हो ।
जहाँ अंधरे रास्ते पर जब कभी चाँदनी हो तो ,  काश उस चन्दा में तुम हो ,
जिंदगी के आखिर पल में जो मांगू मैं खुदा से ,काश उस दुआ में  तुम हो ।
दो जिस्म एक जान लेकर ,चल चले ऐसे जहान चले।
जहाँ जब कभी मैं तन्हा रहू आसमान के तले, बस चमकते तारों मे तुम हो ,
सागर पर चलती लहरें, जो उठे  चाँद की ओर ,उन मचलती  लहरों मे तुम हो ।
जहाँ रात के सन्नाटे मे जो कभी माँ ने  गुनगुनाये मेरे   लिए , काश उस लोरीे  सी तुम हो ,
बचपन मे सुनी जो कहानियों मैंने ,जो आज भी दिल में जिन्दा कहीं है ,काश उन कहानी की परि सी  तुम हो ।
खुशियों का एक आसमान लेकर ,चल चले ऐसे जहान चले ।
जहाँ मंदिर मे जो पढ़ू मैं ,उस पूजा मे तुम हो,
मस्जिद मे मांगी मेरी , हर दुआ  मे  तुम हो।
जहाँ चेहरा कोई भी हो ,हर चेहरे में तुम हो ,
मेरी लिए दिन में सूरज और रात में चाँद तुम हो ।
मोहब्बत   का  एक कारवां लेकर ,चल चले ऐसे जहान चले ।
जहां हर धङकन मे बस इश्क़  और जहां नफरत का कोई निशान ना हो ,
जहाँ सब कुछ तुम बिन कम सा लगे और पाकर तुमको और कोई अरमान ना हो ,
जहाँ तेरे होने से सिर्फ मेरा होना और बिन तेरे मुक्षमे कोई  जान  ना हो ।
सोचता हूँ कुछ ऐसा कर जाऊँ  ,बाद उसके  बिन तेरे मेरा कभी नाम ना हो ।
हाथों मे तेरा हाथ लेकर , चल चले ऐसे जहान चले ।

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