तेरे चरणों को छूकर ,
यूँ तुझसे लिपट कर ,
इतने वर्षों के बाद भी मैं, फिर से बच्चा बन जाता हूँ माँ।
तेरे आँचल की छाया पा कर ,
तेरे गोद की माया पा कर ,
छोड़ छाड़ कर सबकुछ मैं, फिर से अच्छा बन जाता हूँ माँ।
गुज़र कर सारी ऊपर नीचे की बस्ती से भी ,
काले सागर मे अपनी ही टूटी कश्ती से भी ,
तेरे लिए दुनिया में हर बार मैं, सबसे सच्चा बन जाता हूँ माँ ।
हर किसी की नफरत के बाद भी ,
खुद मेरी कुछ काली हसरत के बाद भी ,
पाकर तेरी ममता की छाया मैं, फिर से अच्छा बन जाता हूँ माँ।
कैसे देखूँ तेरे आँशु जो मेरे मोती हैं ,
मेरी लिये जो तू रात भर नहीं सोती है ,
लहू की एक बूद पर ही मैं, दुआओं से लिपटा गुच्छा बन जाता हूँ माँ ।
मैं रोता हूँ तो तुम तो भी रोती है,
मेरे आशुओं से अपना पल्लु भिगोती है ,
मत हो परेशान तू, तेरे लिए फिर से मैं अच्छा बन जाता हूँ माँ।
Bahut khoob likha hai sir,
ReplyDeleteMein likhene mein yougya hoon
Par apni ik disha nahi choon paa raha hoon
Lehkwk ke roop mein .
Kripya kuch upaye batatyi