कितना वक्त गुजर गया,
तुम कितने दूर आ गए ,
फिर भी बीच राह में पीछे कही ,
यादों की खंडहर में ठहरे हुए लगते हो ।
बीच साहिल में नाविक सा,
जिसका हर कोई दो किनारों पर जा पहुँचा ,
रिश्तों के इस भवँर में,
सिर्फ तुम ही खोये हुए लगते हो ।
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वक़्त का खेल
तुम बिछड़ जाओगे मिलकर, इस बात में कोई शक़ ना था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना था !!
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तेरे चरणों को छूकर , यूँ तुझसे लिपट कर , इतने वर्षों के बाद भी मैं, फिर से बच्चा बन जाता हूँ माँ। तेरे आँचल की छाया पा कर , तेरे गोद की...
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कितना वक्त गुजर गया, तुम कितने दूर आ गए , फिर भी बीच राह में पीछे कही , यादों की खंडहर में ठहरे हुए लगते हो । बीच साहिल में नाविक सा, ...
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