Saturday 18 March 2017

अंजान बन जाते हैं....

जिंदगी के इस मोड़ पर आकर ,
चलो फिर से हम अंजान बन जाते हैं,
बाद इतनी खुशियों के तेरे संग, फिर से हम परेशान बन जाते  हैं।

फासलों से परे ,
तेरी हर आह पर कभी तड़प हम जाते थे ,
हार कर वक़्त से  , चलो हम वही पुराने पत्थर के इंसान बन जाते हैं।

अब यह एहसास होता है ,
तुझे पाना आसान नहीं होगा , 
मगर तुझे छुपा लू मैं सूरज की किरणों से  ,खुद  हम वो नीला आसमान बन जाते हैं ।

आज मेरे दिल को यह समझा दो और मैं तेरे दिल बहला दूँ,
दूर रहकर  भी जीना शायद मुमकिन होता है ,
वरना  ज़िस्म से जिन्दा और दिल से हम यूँ बेज़ान  बन जाते हैं ।

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