जिंदगी गुजर गयी ख्वाइशों को मारते मारते ,
और यु ही मैं आखिरी मंजिल से,
जब कुछ कदम दूर जब रहा गया ,
मौत ने भी पूछ ही लिया ,
बता तेरी आखिरी रजा क्या है ।
एक तरंग सी दौड़ी और आँखे नम हो गयी मेरी ,
छुपा कर आँसुओ को पलकों में मैंने
धीरे से उसके पास जाकर बोला
फिर से ना जिंदगी मिले
बस इतना बता उसकी सजा क्या है ।
Thursday 6 April 2017
जिंदगी और ख्वाइश
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