Saturday 21 January 2017

वक़्त..

मुझे वादों का हवाला ना दिया करो ऐ हमसफ़र ,ये जो मेरे  यादों पर बिखरें ज़ख्म है  ,वो इन्ही की निशानियाँ हैं ।
दर्द के सिवा इनमें कुछ और ढूढ़ के देखो जरा , जो तुम्हे कभी महसूस ही नहीं हुआ ,ऐसी मेरी कितनी कहानियाँ हैं ।

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वक़्त का खेल

तुम बिछड़ जाओगे मिलकर,  इस बात में कोई शक़ ना था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना था !!