जिस दर्द से तुम अनजान हो ,
जिसकी वज़ह से मैं तन्हा ही हर बार रोया हूँ,
मेरे उन आँशुओ की कीमत को ,
अदा करेगा कौन?
तुझे मैं माफ़ नही करूँगा,
इसमे तो मुझे भी अब शक़ नही है ,
देखना है कि बस कितनी और कब ,
तेरी सजा तय करेगा कौन ?
अब डर उजाले से लगने लगा है ,
अंधेरे को कुछ कहना अब वाज़िब ना रहा ,
कोई बता दे इस डर से मुझे अब,
जुदा करेगा कौन?
दुआ में जिंदगी माँगू या मौत ,
मेरे हालात यहाँ तक आ पहुँचे अब तो,
हालात बदल दे कोई ऐसी लड़ाई मेरे लिये अब ,
ख़ुदा से लड़ेगा कौन?
जिंदा तो मैं आज भी हूँ ,
मगर मौत की ख्वाहिश हर रोज होती है ,
बता दो ,मौत के आख़िरी मोड़ पर ही सही ,
मुझे फिर से जिंदा करेगा कौन?
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