Thursday 24 March 2016

काश ऐसा हो जाये ....

मुमकिन है हमे भी जिंदगी से मोहब्बत हो जाये ,
सर्त बस इतनी सी है  की,
तस्वीरों के रंग हक़ीक़त मे कभी  बिखर जाये ।

जादू  कुछ हमारे  इश्क़ का ऐसा हो की ,
आप  जुबां से कुछ भी  ना कहे और
हम नजर से  होकर  आपके दिल में उतर जाये ।

दूर जाने का कोई गम ना होगा ,
ख्वाहिस बस इतनी सी है की  ,
जब भी देखूँ मैं चाँद को ,
चेहरा उसमे भी आपका  नजर आये।

खुदा की कुछ ऐसी रहमत हो हम पर ,
नमाज में सर मैं झुकाया करु और
दुआ आपके दिल की   कबूल हो जाये ।

जो मिला नही कभी हक़ीक़त मे मुझे और
जो चाहत भर सी हर बार रह गयी ,
खुशियाँ  ऐसे सपनों की ,
काश  तेरे संग मेरी  जिंदगी मे कभी उभर आये।

Monday 14 March 2016

अगर यही मोहब्बत है तो ....

जिसके ख्याल आने भर से आँखो मे चमक और चेहरे पर एक मासूम सी मुस्कान आ जाये ,

जिसके साथ होने भर से ,जहान पहले से और खूबसूरत हर बार हो जाये ,

जिसके आँशुओं पर इस  जहान की ,हर चीज लूटा देने को दिल चाहे ,

जिसके  ख़ुशी के  लिए ,हजार गम भी सहना कम सा लगने लग जाये ,

अगर यही मोहब्बत है तो ,

हाँ मुझे मोहब्बत है ,

मुझे सिर्फ तुमसे मोहब्बत है ।

सिर्फ तुमसे मोहब्बत है ।।

और जिसका जादू कुछ इस  तरह हो की, हर किसी मे बस उसका ही चेहरा नजर आये ,

जिसे पाने के बाद खुदा भी कम सा लगने लग जाये ,

मिल जाने पर , सदियों तक जिंदा रह जाने का दिल हर बार चाहे ,

खुशि इतनी मिले की , गम से  कोई शिकायत ना रहे  और पत्थर मे भी खुदा नजर आने लग  जाये ,

अगर यही मोहब्बत है तो ,

हां मुझे मोहब्बत है ,

मुझे सिर्फ तुमसे मोहब्बत है ।

सिर्फ तुमसे मोहब्बत है .......

Monday 7 March 2016

एक आखिरी बार

कहा खिलता है रंग मेरी खुशियों का किसी के साथ अब,
बस एक आखिरी बार फिर से उन्हें खिलाने  आ जा ।

कभी सो जाया करता था तेरी यादों के सहारे मैं तो , वक़्त ने धूमिल अब उन्हें भी कर दिया,
फिर से उन्हें मेरे दिल मे गुन गुनाने ही आ जा ।

अब तो परछाई भी मिलती नहीं खोजने से मुझे,
कहीं खो ना दूँ मैं खुद को ,
मुझको खुद से अब बचाने  आ जा ।

यूँ तो पलों को गुजरने में सदियों सा वक़्त लगता है अब, 
ठहर गए है कुछ पल मेरी जिंदगी के  तेरे जाने के बाद ,
अब एक आखिरी बार उनको चलाने ही आ जा ।

क्यों समझ में नहीं आती है जिंदगी मुझको ,
उलझ जाता हूँ हर बार समझने मे इसको ,
अब इस जिंदगी को फिर से सुलझाने आ जा ।

आज भी उसी मोड़ पर ठहरा हूँ मैं 
जहां से तुम छोड़ कर आगे बढ़ गए थे कभी ,
एक आखिरी बार मुझे फिर से गले लगाने ही आ जा ।

छोड़ दिया मैंने खुदा से दुआ मांगना अब तो ,
बैठा है रूठ कर ना जाने क्यों वो मुझसे,
अब तो उसे मनाने  ही आ जा ।

आ गया आखिरी पल जिंदगी का अब तो ,और
ख़तम हुआ अब दौर गिलों शिकवों का ,
मेरी आखिरी ख्वाहिश के बहाने आ जा ।

कुछ जाना ही नहीं तेरे सिवा इस जहान में मैंने कभी ,
कंधा तो कोई भी दे देगा मेरे जनाजे को ,
बस एक आखिरी बार आँसू बहाने ही आ जा।

Saturday 5 March 2016

उलझन


ये राह-ए-ज़िंदगी इतनी उलझी सी क्यों है , मैं हर बार   शूरू करता  हूँ चलना और हर बार खो जाता  हूँ ।

क्या पूँछू मैं ज़िन्दगी पता तेरा, ना जाने क्यों मैं पा कर भी तुमको, खोजने हर बार निकल जाता हूँ ।

ऐ ज़िन्दगी कभी पाया था मैंने भी खुदा को तेरी राहों में, मगर संभाल लेता मैं अपने खुदा को ,इतना हुनर कहाँ जानता हूँ।

क्या विडंबना है  ऐ मेरी किस्मत ,थी उम्मीद जिनसे वफ़ा की ,बेवफ़ाई वो और वफ़ा करना सिर्फ मैं जानता  हूँ।

कभी  ज़िन्दगी के  लिये मैं पूरे जहान  से लड़ गया था ,
आज हर बार दुआ में ,लिए हाथ मे कफन , मौत मैं माँगता हूँ ।

Wednesday 2 March 2016

भूल कर भी मैं तुझे भूला क्यों नही पाता हूँ ?


भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

दुआ में जब हर  बार  मैं खुशी मांगता हूँ, फिर
रिश्तों पर जमी इस धूल को उड़ा क्यों नहीं पाता हूँ।

भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

काश मिल जाये ख़ुदा एक बार मुझको,  पूछूँगा
अब  आखिर मैं ही तुझे रास क्यों नहीं आता हूँ।

भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

दुश्मन भी अब तो अपने हो गए हैं तेरे,
फिर  मैं ही हर बार क्यों दूर और चला जाता हूँ।

भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

क्यों हर बार घेर लेता है एक सुनसान सा अंधेरा मुझको,
उस अंधेरे में तेरी यादों से घिरा खुद को क्यों पाता हूँ ।

भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

जाना मैं चाहूँ कहीं भी ,पर चलकर
सिर्फ तेरे ही दर पर क्यों आ जाता हूँ ।।

भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

हर कोई अपना यहाँ कहता है मुझे, फिर
अपनों के बीच तन्हा मैं हर बार खुद को क्यों पाता हूँ ।

भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

कोशिश भुलाने की तो मैं हर बार करता हूँ,
फिर भी हर किसी में तेरा ही चेहरा क्यों पाता हूँ।

भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

Tuesday 1 March 2016

वक़्त

असर तो देख वक़्त का ग़ालिब ,
देखते देखते मासूम बचपन की हँसी ,
ना जाने कब  छोटी सी इक मुस्कान मे बदल जाती है ।।

वक़्त का खेल

तुम बिछड़ जाओगे मिलकर,  इस बात में कोई शक़ ना  था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना  था !!