असर तो देख वक़्त का ग़ालिब ,
देखते देखते मासूम बचपन की हँसी ,
ना जाने कब छोटी सी इक मुस्कान मे बदल जाती है ।।
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वक़्त का खेल
तुम बिछड़ जाओगे मिलकर, इस बात में कोई शक़ ना था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना था !!
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तेरे चरणों को छूकर , यूँ तुझसे लिपट कर , इतने वर्षों के बाद भी मैं, फिर से बच्चा बन जाता हूँ माँ। तेरे आँचल की छाया पा कर , तेरे गोद की...
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आज भी असर तो देख मेरी मोहब्बत का ऐ बेवफा, गुम कही भी हूँ पाया सिर्फ तेरे गली मे जाता हूँ ।।
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