Wednesday 2 March 2016

भूल कर भी मैं तुझे भूला क्यों नही पाता हूँ ?


भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

दुआ में जब हर  बार  मैं खुशी मांगता हूँ, फिर
रिश्तों पर जमी इस धूल को उड़ा क्यों नहीं पाता हूँ।

भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

काश मिल जाये ख़ुदा एक बार मुझको,  पूछूँगा
अब  आखिर मैं ही तुझे रास क्यों नहीं आता हूँ।

भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

दुश्मन भी अब तो अपने हो गए हैं तेरे,
फिर  मैं ही हर बार क्यों दूर और चला जाता हूँ।

भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

क्यों हर बार घेर लेता है एक सुनसान सा अंधेरा मुझको,
उस अंधेरे में तेरी यादों से घिरा खुद को क्यों पाता हूँ ।

भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

जाना मैं चाहूँ कहीं भी ,पर चलकर
सिर्फ तेरे ही दर पर क्यों आ जाता हूँ ।।

भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

हर कोई अपना यहाँ कहता है मुझे, फिर
अपनों के बीच तन्हा मैं हर बार खुद को क्यों पाता हूँ ।

भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

कोशिश भुलाने की तो मैं हर बार करता हूँ,
फिर भी हर किसी में तेरा ही चेहरा क्यों पाता हूँ।

भूल कर भी मैं तुझे भुला क्यों नहीं पाता हूँ।

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