Monday 7 March 2016

एक आखिरी बार

कहा खिलता है रंग मेरी खुशियों का किसी के साथ अब,
बस एक आखिरी बार फिर से उन्हें खिलाने  आ जा ।

कभी सो जाया करता था तेरी यादों के सहारे मैं तो , वक़्त ने धूमिल अब उन्हें भी कर दिया,
फिर से उन्हें मेरे दिल मे गुन गुनाने ही आ जा ।

अब तो परछाई भी मिलती नहीं खोजने से मुझे,
कहीं खो ना दूँ मैं खुद को ,
मुझको खुद से अब बचाने  आ जा ।

यूँ तो पलों को गुजरने में सदियों सा वक़्त लगता है अब, 
ठहर गए है कुछ पल मेरी जिंदगी के  तेरे जाने के बाद ,
अब एक आखिरी बार उनको चलाने ही आ जा ।

क्यों समझ में नहीं आती है जिंदगी मुझको ,
उलझ जाता हूँ हर बार समझने मे इसको ,
अब इस जिंदगी को फिर से सुलझाने आ जा ।

आज भी उसी मोड़ पर ठहरा हूँ मैं 
जहां से तुम छोड़ कर आगे बढ़ गए थे कभी ,
एक आखिरी बार मुझे फिर से गले लगाने ही आ जा ।

छोड़ दिया मैंने खुदा से दुआ मांगना अब तो ,
बैठा है रूठ कर ना जाने क्यों वो मुझसे,
अब तो उसे मनाने  ही आ जा ।

आ गया आखिरी पल जिंदगी का अब तो ,और
ख़तम हुआ अब दौर गिलों शिकवों का ,
मेरी आखिरी ख्वाहिश के बहाने आ जा ।

कुछ जाना ही नहीं तेरे सिवा इस जहान में मैंने कभी ,
कंधा तो कोई भी दे देगा मेरे जनाजे को ,
बस एक आखिरी बार आँसू बहाने ही आ जा।

No comments:

Post a Comment

वक़्त का खेल

तुम बिछड़ जाओगे मिलकर,  इस बात में कोई शक़ ना था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना था !!