Sunday 11 December 2016

वक़्त

मैं सागर हूँ  ऐसे मोहब्बत  का मेरे हमसफ़र , जिसका कोई किनारा ना  होगा।
हर कस्ती की एक उम्र होती है ,डूब जाना मेरे लिए  मुझे जरा भी गवारा  ना होगा ।

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वक़्त का खेल

तुम बिछड़ जाओगे मिलकर,  इस बात में कोई शक़ ना था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना था !!