क्यों लगता है देख कर तुझको ऐसा,
जैसे तुझे पाने के लिए ही ,
कई जन्मों से चलता रहा हूँ मैं।
जैसे कुछ वक्त बिताने के लिए ,
कई सदियों से जगता रहा हूँ मैं ।
क्यों लगता है देख कर तुझको ऐसा,
जैसे तुझे याद रखने के लिए ,
अब तक सब कुछ भुलाता रहा हूँ मैं ।
जैसे अब भी बैठ कर किनारे पर तन्हा,
गीत वही तेरे लिए गुनगुनाता रहा हूँ मैं।
क्यों लगता है देख कर तुझको ऐसा,
जैसे अपने लिए ही मैं अब तक ,
तुझको दुनियाँ से बचाता रहा हूँ मैं ,
जैसे महल तेरे खुशियों का ,
हर रोज़ दुआवों में ही सजाता रहा हूँ मैं ।
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