जिन पे ख़ुद से भी ज्यादा यक़ीन था,
वही बैठे है मेरे दुश्मन की मफ्फिल में ,
अब दुश्मन की तारीफ या ,
उनसे खुद जाकर शिकायत करूँ मैं ।
मैंने खोया या उन्होंने मुझको ,
ये हम फिर कभी सोचेंगे ,
अभी सवाल इतना सा है की ,
उनकी मोहब्बत की तौहीन ,
या दिल से लगाकर हिफाज़त करूँ मैं।
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