कभी वफ़ा समझ ना आये तो ,
साँसों से गुफ़्तगू में ही पूछ लेना ,
ये क्यों थम जाती हैं हर बार ,
जान जाने के बाद।
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वक़्त का खेल
तुम बिछड़ जाओगे मिलकर, इस बात में कोई शक़ ना था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना था !!
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तेरे चरणों को छूकर , यूँ तुझसे लिपट कर , इतने वर्षों के बाद भी मैं, फिर से बच्चा बन जाता हूँ माँ। तेरे आँचल की छाया पा कर , तेरे गोद की...
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इतनी मोहब्बत करूँगा ए मोहब्बत तुझे ,की खुद को खुदा समझ बैठोगी । अगर वफ़ा कर नही पायी तो मेरे वफ़ा को तुम अपनी सजा समझ बैठोगी ।
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