Tuesday 28 July 2020

इंसान बने रहना

मोहब्बत थी मेरी और ज़ोर-ए-तसव्वुर था मेरा,
जो तुम्हें  ख़ुदा बना बैठा।
वरना ऐसे जहाँ में ख़ुद इंसान का इंसान रहना,
है नामुमकिन सा लगता।

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वक़्त का खेल

तुम बिछड़ जाओगे मिलकर,  इस बात में कोई शक़ ना था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना था !!