Friday 22 April 2016

मोहब्बत भी तुम हो खुदा भी तुम हो....

मोहब्बत भी तुम हो खुदा भी तुम हो ,

आज क्या कह दू  मैं ,जो तुमको यक़ीन हो जाये ।
हो जाये यक़ीन तुमको एक बार ,तो मुझे और कुछ  चाहत ना रह जाये ।

जुबा का कोई काम ना हो हमें  इश्क़ की गुफ़्तगू के लिए , सिर्फ दिल की दिल से बात हो जाये ।

मोहब्बत कुछ ऐसी हो हमारे दर्मियां , आँशु तेरे आँखों के आँखों मे मेरे हर बार  उभर आये।

कुछ यु बहे मोहब्बत की फ़िज़ा,तेरे दिल की धड़कन  मेरे दिल की धड़कन बने और हम  दो जिस्म एक जान हो जाये ।

हवाओं मे लिपटा बहूँगा मैं , छु कर तुझे गुजरा करूँगा मैं ,और यु दूर होने का  हमे  गम ना रह जाये ।       

मोहब्बत भी तुम हो खुदा भी तुम हो ,

आज क्या कर दू मैं ,जो तुमको यक़ीन हो जाये ।
हो जाये यक़ीन तुमको एक बार, तो मुझे और कुछ चाहत ना रह जाये।

दुआ मे मैं हर बार मागता सर झुकाकर , काश खुशि के संग गम भी ,वजह तेरे मुस्कान का बन  जाये ।

डरना क्या अब जिंदगी के अंधेरे से ,जब कभी तुम  तो कभी हम तेरे लिये  ,अंधेरो मे खिलता चाँद बन जाये ।

तुम मेरे और मैं तेरे आँखों मे देखूँ ,दिल की दीवार पर बनी तस्वीर ,नजरों से नजरों मे ही बस बिखर जाये।

फिर कोई आईना भी ना हो,  किसी पहचान की जरूरत ना हो हमें ,ये मासूम सी मोहब्बत ही हमारी  पहचान बन जाये ।

जान हो ना हो ,साँस चले ना चले मैं हर बार पा लूंगा  तुझे बन्द आँखो से भी ,बस मेरे दिल मे तेरीे मोहब्बत रह जाये ।

Friday 15 April 2016

दिल की नजर से

खोजते खोजते जिन्हें हम ,
इस बेगाने जहान मे खुद को खो दिया ,
पर वो कहीं  नजर ना आये ।

जब थक कर  हार कर,
दिल की नजर से  हमने देखा एक बार  ,
तो इस जहान मे वो ही बस नजर आये ।

कोई कैसे करे मोहब्बत ...

कोई कैसे करे मोहब्बत जिंदगी तेरे उलझनों से ,
इतने कष्टों को झेल जाने के बाद ।

मैं हर बार कस्तीयां बनाता अपने मुक्क़दर का ,
डूब जाता तेरे सागर मे  तूफान आने के बाद ।

हार कर ही सही , लड़खड़ा कर मैं चल तो पड़ा था ,
मैं प्यास से तड़प जाता राहों मे तेरे ,
फिर से सूरज छा जाने के बाद ।

कोई कैसे करे मोहब्बत जिंदगी तेरे उलझनों से ,
इतने कष्टों को झेल जाने के बाद ।

अपनों की ही महफ़िल मे अपने नहीं मिलते,
मैं खुद ही पोछता  हूँ आंशुओं को अपने ,
अब हर बार तन्हां  रो जाने जाने के बाद ।

मंजिल  धुँधली सी और हो गयी ,
मुश्किलें जो आसां थी मुश्किल सी और हो गयी ,
जिंदगी मे बार बार  ठोकर खा जाने के बाद ।

कोई कैसे करे मोहब्बत जिंदगी तेरे उलझनों से ,
इतने कष्टों को झेल जाने के बाद ।

कोई मेरी मोहब्बत का इम्तिहान क्या लेगा ,
दो पल मे क्या, सदियों मे जान क्या लेगा ,
मैं आसामा छु देता था उनके साथ हो जाने के बाद ।

गलत ना तुम थे गलत ना हम थे ,
वक़्त के गुनाहों को झेल रहे हम,
एक दूसरे से अलग हो जाने के बाद ।

कोई कैसे करे मोहब्बत जिंदगी तेरे उलझनों से ,
इतने कष्टों को झेल जाने के बाद।

कुछ मुश्किल कहाँ होता है ...


बिखर कर फिर से संभल जाना हर किसी के नसीब मे कहाँ होता है,
हो साथ अगर मेरे खुदा का तो ,फिर कोई हालात मुश्किल कहाँ होता है ।

हार कर हार ना मानना और गिर कर उठ  जाना ,हर बार  आसान कहाँ होता है ,
हो अगर माँ की दुआ साथ में तो , हार से जीत जाना नामुमकिन  कहाँ होता है ।

बन के लहरे जब भी तूफान आये तो ,कस्ती से  पार कर जाना आसान कहाँ होता है ,
हो अगर दिल मे चाहत कुछ कर गुजरने की तो ,तूफान को चिर जाना  मुश्किल कहाँ होता है ।

किसी को खुदा बना लेना और किसी का खुदा बन जाना ये हर बार  कहाँ होता है ,
हो अगर दिल मे मोहब्बत बेसुमार तो ,खोकर इश्क़  को पाना नामुमकिन कहाँ होता है ।

हर आँशु को पहचान मिल जाये,ये हर बार पलकों के बस में कहाँ होता है ,
जिंदगी में इतने वर्षों के बाद ,  राज को दिल में दफना लेना अब मुश्किल कहाँ होता है ।

Tuesday 12 April 2016

हक़ीक़त

पूछे कोई जिंदगी से ,
ये असफलताओ का दौर कब तक  और चलेगा , 
सासों का चलना अब तो मद्धम सा लगता है ,
खुद का होना भी मुझे अब कुछ कम सा लगता है ।

यहाँ जिंदा रह कर भी कोई जिंदा कहाँ है ,
इंसान  होकर  भी इंसान कहाँ है,
हर किसी को अपना गम सिर्फ गम सा लगता है ,
औरो का गम उन्हें कुछ मरहम सा लगता है ।

क्या चाहत थी तेरी ,जो मैं समझ नही पाया,
ऐसी क्या कमी थी मुझमे ,जो तुम सह नही पाया ,
मेरी मोहब्बत जो अब तुझे बंधन सा लगता है ,
और मेरा पास होना भी तुम्हे उलझन सा लगता है ।

जिन्हें जिया नही ,जिन पलों को गुजर जाने दिया,
मुठ्ठी मे रेत की तरह जिन्हें यूँ ही फिसल जाने दिया,
उन्हें खोना हर किसी को क्यों  तड़पन सा लगता है ,
साया उन पलों का उन्हें अब क्यों कफ़न सा लगता है

Tuesday 5 April 2016

तुम बिन

कहीं रह ना जाऊँ  अधूरा तुम बिन ,
अब डर सा लगने लगा है ।

मिलता नही मेरा निशां,
कहीं खो तो नहीं दिया तुझमे कहीं
शायद पा ना सकु खुद को तुम बिन,
अब डर सा लगने लगा है ।

अब आँखे भी नही देती साथ मेरी मुस्कान का ,
छुपाना जो भी दिल मे चाहा ,
हर बार अश्कों मे बयां हो जाता है ,
शायद कुछ कह ना पाऊँ अब और जुबां से,
अब डर सा लगने लगा है ।

कहीं रह ना जाऊँ  अधूरा तुम बिन ,
अब डर सा लगने लगा है ।

तुम्हे खोना मुमकिन ना था  ,
बिना खोये खुद को, तुम्हें पाना आसान ना था ,
शायद कभी  पा ना सकु खुद को तुम बिन ।
अब डर सा लगने लगा है ।

दबी सी, छुपी सी मोहब्बत मुझमे कही,
रखा था छुपा कर जिसे सिसकियों मे ,
अब रो रो कर रही है ,
शायद मर कर भी  ,जिंदा रह ना जाऊँ तुम  बिन ,
अब डर सा लगने लगा है ।

कहीं रह ना जाऊँ  अधूरा तुम बिन ,
अब डर सा लगने लगा है ।

जो लगा था आसान  कभी,
अब नामुमकिन सा लगता है ,
शायद रह ना पाऊँ तुम बिन  ,
अब डर सा लगने लगा है ।

तुम बिन , सूरज  साथ ना देता है ,
अंधेरा और घना हो जाता है ,
मैं तन्हा एक कदम चलता हूँ,
मंजिल चार कदम चल जाती   है ,
चाहत भर सी ना रह जाये मंजिल मेरी ,
अब डर सा लगने लगा है ।

तुम बढ़ा देते हाथ तो ,
मैं थाम लिया होता ,
लड़खड़ा कर ही सही ,
गिरने के बाद ,चल दिया होता ,
शायद चल ना पाऊँ तुम बिन ,
अब डर सा लगने लगा है ।

कहीं रह ना जाऊँ  अधूरा तुम बिन ,
अब डर सा लगने लगा है ।

क्यों बाकी है ...

तेरे मेरे  बीच कुछ ना हो कर भी ,
ये एक विस्वास सा क्यों बाकी  है ।

जीना मुमकिन ना था ना तेरे बिना ,
फिर मरने के बाद ,
ये कुछ सांस सी क्यों बाकी है।

छोर दिया साथ ,
अब तो आँशु की आखिरी बूँद ने ,
फिर मिलने के बाद,
रोने की एक आस सी क्यों बाकी है।

तेरे मेरे  बीच कुछ ना हो कर भी ,
ये एक विस्वास सा क्यों बाकी  है ।

तुमसे मिलना अब मुमकिन ना होगा  ,
फिर मेरे दिल मे ,
तुम्हें पाने की एक प्यास सी क्यों बाकी है ।

हर कोशिस कर ली,
तुम्हें दिल की दीवारों से मिटा देने की ,
फिर  वर्षों बाद भी ,
यादें धुँधली ही सही ,
इतनी ख़ास सी क्यों बाकी है ।

तेरे मेरे  बीच कुछ ना हो कर भी ,
ये एक विस्वास सा क्यों बाकी  है ।

हो ना यक़ीन...

दोस्त और भी मिल जाएंगे जिंदगी के इस सफर में, मगर मुझ सा फिर ना पाओगी तुम ।

हो ना यकीन तो ,खुदा से  मांग कर देख लो मुझ सा   , हर बार दुआ मे सिर्फ मुझको ही पाओगी तुम ।।

कल भला हम रहे ना रहे ...

मिल जाने दो अपने गमो को मेरी खुशियों के साथ ,
और रो लेने दो इन्हें एक बार  साथ मिलकर ,
कल भला ये खुशियाँ मेरी  रहे ना रहे ।

खुद संभल  जाने मे कहा खुशि मिलती है ,  
जिंदगी के इस मोड़ पर आकर ,
लड़खड़ा तुम जाया करो ,संभाल हम लेंगे तुम्हें आकर ,
कल भला हम यु संभालने के लिए रहे ना रहे ।

यु तो मुमकिन नही रहेगा मुक़द्दर मे मेरे ,
तेरे लिए फना  हर बार हो जाना ,
वक़्त के साथ हाथ की लकीरे भी बदल जाया करती है ,
कल भला  मुक़द्दर मे मेरे ये रहे ना रहे ।

कहाँ होगी  पहचान हर किसी को तेरे अश्कों का ,
ये मोती है जिंदगी के ,
इन्हें यु ही ज़मी से मिला दिया नही करते है ,
कल भला  ये पहचान  मुझे भी रहे ना रहे ।

अपने खुशियों का आसियाना ,
हर किसी के कंधे पर बनाया नही करते है ,
एक वक़्त आने के बाद ,
लोगों के खुदा भी बदल जाया करते हैं ,
कल भला तुम्हें समझाने के लिए हम रहे ना रहे ।

नासमझ हम हर बार बन जाते है ,
भूल कर रीति रिवाज़ों को ,हर एक बंधनों को ,
अनजाने भी बढ़ा  कर कदम दिल से ,
गले लगा लिया करते हैं ऐसे दीवाने  को  ।
कल भला हम   नासमझ  रहे ना रहे ।

तुम्हारे  लिये इस जहान से ,
मेरा हर बार लड़ जाना  ,
मेरे बस मे ना होगा ,
जिंदा रहकर इस  जहान मे ,
वक़्त से कौन ना  हारा है,
कल हम भला लड़ने के लिये रहे ना रहे ।

वक़्त का खेल

तुम बिछड़ जाओगे मिलकर,  इस बात में कोई शक़ ना  था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना  था !!