Tuesday 5 April 2016

तुम बिन

कहीं रह ना जाऊँ  अधूरा तुम बिन ,
अब डर सा लगने लगा है ।

मिलता नही मेरा निशां,
कहीं खो तो नहीं दिया तुझमे कहीं
शायद पा ना सकु खुद को तुम बिन,
अब डर सा लगने लगा है ।

अब आँखे भी नही देती साथ मेरी मुस्कान का ,
छुपाना जो भी दिल मे चाहा ,
हर बार अश्कों मे बयां हो जाता है ,
शायद कुछ कह ना पाऊँ अब और जुबां से,
अब डर सा लगने लगा है ।

कहीं रह ना जाऊँ  अधूरा तुम बिन ,
अब डर सा लगने लगा है ।

तुम्हे खोना मुमकिन ना था  ,
बिना खोये खुद को, तुम्हें पाना आसान ना था ,
शायद कभी  पा ना सकु खुद को तुम बिन ।
अब डर सा लगने लगा है ।

दबी सी, छुपी सी मोहब्बत मुझमे कही,
रखा था छुपा कर जिसे सिसकियों मे ,
अब रो रो कर रही है ,
शायद मर कर भी  ,जिंदा रह ना जाऊँ तुम  बिन ,
अब डर सा लगने लगा है ।

कहीं रह ना जाऊँ  अधूरा तुम बिन ,
अब डर सा लगने लगा है ।

जो लगा था आसान  कभी,
अब नामुमकिन सा लगता है ,
शायद रह ना पाऊँ तुम बिन  ,
अब डर सा लगने लगा है ।

तुम बिन , सूरज  साथ ना देता है ,
अंधेरा और घना हो जाता है ,
मैं तन्हा एक कदम चलता हूँ,
मंजिल चार कदम चल जाती   है ,
चाहत भर सी ना रह जाये मंजिल मेरी ,
अब डर सा लगने लगा है ।

तुम बढ़ा देते हाथ तो ,
मैं थाम लिया होता ,
लड़खड़ा कर ही सही ,
गिरने के बाद ,चल दिया होता ,
शायद चल ना पाऊँ तुम बिन ,
अब डर सा लगने लगा है ।

कहीं रह ना जाऊँ  अधूरा तुम बिन ,
अब डर सा लगने लगा है ।

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