तेरे मेरे बीच कुछ ना हो कर भी ,
ये एक विस्वास सा क्यों बाकी है ।
जीना मुमकिन ना था ना तेरे बिना ,
फिर मरने के बाद ,
ये कुछ सांस सी क्यों बाकी है।
छोर दिया साथ ,
अब तो आँशु की आखिरी बूँद ने ,
फिर मिलने के बाद,
रोने की एक आस सी क्यों बाकी है।
तेरे मेरे बीच कुछ ना हो कर भी ,
ये एक विस्वास सा क्यों बाकी है ।
तुमसे मिलना अब मुमकिन ना होगा ,
फिर मेरे दिल मे ,
तुम्हें पाने की एक प्यास सी क्यों बाकी है ।
हर कोशिस कर ली,
तुम्हें दिल की दीवारों से मिटा देने की ,
फिर वर्षों बाद भी ,
यादें धुँधली ही सही ,
इतनी ख़ास सी क्यों बाकी है ।
तेरे मेरे बीच कुछ ना हो कर भी ,
ये एक विस्वास सा क्यों बाकी है ।
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