मिल जाने दो अपने गमो को मेरी खुशियों के साथ ,
और रो लेने दो इन्हें एक बार साथ मिलकर ,
कल भला ये खुशियाँ मेरी रहे ना रहे ।
खुद संभल जाने मे कहा खुशि मिलती है ,
जिंदगी के इस मोड़ पर आकर ,
लड़खड़ा तुम जाया करो ,संभाल हम लेंगे तुम्हें आकर ,
कल भला हम यु संभालने के लिए रहे ना रहे ।
यु तो मुमकिन नही रहेगा मुक़द्दर मे मेरे ,
तेरे लिए फना हर बार हो जाना ,
वक़्त के साथ हाथ की लकीरे भी बदल जाया करती है ,
कल भला मुक़द्दर मे मेरे ये रहे ना रहे ।
कहाँ होगी पहचान हर किसी को तेरे अश्कों का ,
ये मोती है जिंदगी के ,
इन्हें यु ही ज़मी से मिला दिया नही करते है ,
कल भला ये पहचान मुझे भी रहे ना रहे ।
अपने खुशियों का आसियाना ,
हर किसी के कंधे पर बनाया नही करते है ,
एक वक़्त आने के बाद ,
लोगों के खुदा भी बदल जाया करते हैं ,
कल भला तुम्हें समझाने के लिए हम रहे ना रहे ।
नासमझ हम हर बार बन जाते है ,
भूल कर रीति रिवाज़ों को ,हर एक बंधनों को ,
अनजाने भी बढ़ा कर कदम दिल से ,
गले लगा लिया करते हैं ऐसे दीवाने को ।
कल भला हम नासमझ रहे ना रहे ।
तुम्हारे लिये इस जहान से ,
मेरा हर बार लड़ जाना ,
मेरे बस मे ना होगा ,
जिंदा रहकर इस जहान मे ,
वक़्त से कौन ना हारा है,
कल हम भला लड़ने के लिये रहे ना रहे ।
No comments:
Post a Comment