Tuesday 5 April 2016

कल भला हम रहे ना रहे ...

मिल जाने दो अपने गमो को मेरी खुशियों के साथ ,
और रो लेने दो इन्हें एक बार  साथ मिलकर ,
कल भला ये खुशियाँ मेरी  रहे ना रहे ।

खुद संभल  जाने मे कहा खुशि मिलती है ,  
जिंदगी के इस मोड़ पर आकर ,
लड़खड़ा तुम जाया करो ,संभाल हम लेंगे तुम्हें आकर ,
कल भला हम यु संभालने के लिए रहे ना रहे ।

यु तो मुमकिन नही रहेगा मुक़द्दर मे मेरे ,
तेरे लिए फना  हर बार हो जाना ,
वक़्त के साथ हाथ की लकीरे भी बदल जाया करती है ,
कल भला  मुक़द्दर मे मेरे ये रहे ना रहे ।

कहाँ होगी  पहचान हर किसी को तेरे अश्कों का ,
ये मोती है जिंदगी के ,
इन्हें यु ही ज़मी से मिला दिया नही करते है ,
कल भला  ये पहचान  मुझे भी रहे ना रहे ।

अपने खुशियों का आसियाना ,
हर किसी के कंधे पर बनाया नही करते है ,
एक वक़्त आने के बाद ,
लोगों के खुदा भी बदल जाया करते हैं ,
कल भला तुम्हें समझाने के लिए हम रहे ना रहे ।

नासमझ हम हर बार बन जाते है ,
भूल कर रीति रिवाज़ों को ,हर एक बंधनों को ,
अनजाने भी बढ़ा  कर कदम दिल से ,
गले लगा लिया करते हैं ऐसे दीवाने  को  ।
कल भला हम   नासमझ  रहे ना रहे ।

तुम्हारे  लिये इस जहान से ,
मेरा हर बार लड़ जाना  ,
मेरे बस मे ना होगा ,
जिंदा रहकर इस  जहान मे ,
वक़्त से कौन ना  हारा है,
कल हम भला लड़ने के लिये रहे ना रहे ।

No comments:

Post a Comment

वक़्त का खेल

तुम बिछड़ जाओगे मिलकर,  इस बात में कोई शक़ ना था ! मगर भुलाने में उम्र गुजर जाएग, ये मालूम ना था !!